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________________ अड्ढाइज्जेसु सूत्र संयम के बिना और काया के ऊपर काबू रखे बिना ये सब असंभव हैं। एक क्षण के लिए भी ऐसा जीवन जीना सामान्य जन के लिए राधावेध साधने जैसा है । ५१ यह पद बोलते समय वर्तमान काल में भी राधावेध साधने जैसे दुष्कर संयम का पालन करने वाले जो दो हज़ार करोड़ साधु विचर रहे हैं, उनको स्मृति में लाकर, बहुमान युक्त हृदय से, मस्तक झुकाकर, वाणी के द्वारा उनकी वंदना करनी है और वंदन करते समय अंतर में ऐसा भाव प्रगट करना है “अहो ! जैनशासन ने सुखी होने के लिए कैसा अनुपम मार्ग बताया है। प्रारंभिक भूमिका में यह मार्ग अति दुष्कर लगता है फिर भी वर्तमान काल में तलवार की धार जैसे इस मार्ग के ऊपर चलनेवाले २०००,००,००,००० (दो हज़ार करोड़) साधुसाध्वीजी भगवंत हैं। यदि इतनी बड़ी संख्या मे मुमुक्षु साधक ऐसा निर्दोष जीवन जीकर स्वयं प्रसन्न रहकर अनेकों को प्रसन्न रख सकते हैं, तो मैं निर्भागी एकदो घड़ी के लिए भी उनके जैसा जीवन क्यों नहीं जी सकता ? धन्य हैं वे मुनिवर ! आज उनके सत्त्व और सामर्थ्य को नमन करके प्रार्थना करता हूँ कि, 'हे भगवंत ! संयम जीवन का स्वीकार कर उनके जैसा निरतिचार पालन करने का सामर्थ्य मुझे प्रदान करें !”
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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