SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अड्ढाइज्जेसु सूत्र ४७ आहार लाने और ग्रहण करने के लिए जिस काष्ठमय भाजन (लकड़ी से बने बर्तन) का उपयोग करते हैं, उसे पात्रा कहा जाता है। यद्यपि यहाँ रजोहरण, पात्र और गुच्छा-इन तीन वस्तुओं का ही उल्लेख किया गया है, परन्तु इसके उपलक्षण से श्वेत वस्त्र, काष्ठ का डंडा, गरम कंबल वगैरह का समावेश भी स्वमति से समझ लेना चाहिए। इस पद द्वारा समग्र बाह्य संसार का त्याग करके आभ्यंतर संसार का क्षय करने के लिए जिन्होंने संयम जीवन का स्वीकार किया है, ऐसे साधु महात्माओं का अपने व्रत के अनुरूप बाह्य वेष कैसा होता है, उसका चिंतन, मनन और ध्यान करना है । केवल द्रव्य से रजोहरण आदि लिंग धारण करनेवाले साधु नहीं होते, इसलिए ऐसे वेष के साथ मुनि कैसे भाव से युक्त होने चाहिएँ, उसे अब बताया गया है । पंच महब्बयधारा - पाँच महाव्रतों को धारण करनेवाले। जिनका स्वरूप पंचिंदिय सूत्र में बताया गया है, ऐसे पाँच महाव्रतों को धारण करनेवाले । अट्ठारससहस्स-सीलंगधारा - अठारह हजार शीलांग को धारण करनेवाले। 3. शील के अट्ठारह हज़ार अंगों को व्यक्त करने वाली गाथा । जोए करणे सन्ना, इंदिय मोसाइ समणधम्मे य । सीलंग-सहस्साणं, अट्ठारस-सहस्स णिप्फत्ती।। योग, करण, संज्ञा, इंद्रिय, पृथ्वीकाय आदि तथा श्रमणधर्म इस प्रकार अट्ठारह हजार अंगों की सिद्धि होती है । १० यतिधर्म से x १० पृथ्वीकायादि का रक्षण x ५ इन्द्रिय का संवर x ४ संज्ञा का त्याग x ३ योग x ३ करण-करावण-अनुमोदन = १८०००
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy