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________________ GROGR भवनदेवता की स्तुति सूत्र परिचय: _भवन देवता को ध्यान में रखकर रचित यह स्तुति भवनदेवता की स्तुति कहलाती है । भवन, क्षेत्र के अंतर्गत एक विभाग है । जिस घर में रहकर साधु-साध्वीजी भगवंत अपने संयम की साधना करते हैं, उसे भवन कहा जाता है । यह घर यदि उपद्रव रहित हो तो साधु-साध्वीजी भगवंत निश्चितता से संयमादि की साधना कर सकते हैं । इसीलिए इस स्तुति के द्वारा घर के अधिष्ठायक देवता से प्रार्थना की गई है कि वे ज्ञानादि में मग्न साधु-साध्वीयों का कल्याण करें अर्थात् इस भवन के वातावरण को उपद्रव रहित करें । श्रमण भगवंत जब स्थानांतर करते हैं, तब वे नए स्थान में मांगलिक प्रतिक्रमण करते हैं । मांगलिक प्रतिक्रमण तथा पक्खि, चउमासी और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के अंत में भवनदेवता के स्मरण में एक नवकार का कायोत्सर्ग करके यह स्तुति बोली जाती है। अवसर आने पर श्रमण संघ की वैयावच्च करनेवाले देवताओं का स्मरण करना साधक का कर्तव्य है । यह बात पू. हरिभद्रसूरीश्वरजी
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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