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सूत्र संवेदना-५ आपसे भौतिक सुख की नहीं, आत्मिक सुख की प्रार्थना करनी है । मैं जानता हूँ कि आत्मा की सुखमय अवस्था को प्राप्त करने के लिए मुझे स्वयं ही साधना करनी पड़ेगी, फिर भी यदि आप मुझे साधना के लिए अनुकूल एवं उपद्रव रहित क्षेत्र प्रदान नहीं करेंगे तो मैं साधना कैसे कर पाऊँगा ? आज तक ऐसे क्षेत्र प्रदान करके आपने मुझ पर बड़ा उपकार किया है । उसके लिए मैं सदा आपका ऋणी रहूँगा; भविष्य में भी साधना के अनुकूल क्षेत्र प्रदान करने की मेरी विनती का स्वीकार कर मुझ पर कूपा करते रहें ।"