SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल सूत्र : क्षेत्रदेवता की स्तुति - २ यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्र - देवता नित्यं, भूयान्नः सुख - दायिनी । । १ । । पद-४, गाथा-१, संपदा-१, गुरू अक्षर - ११, लघुअक्षर- २१, कुल अक्षर - ३२ अन्वय सहित शब्दार्थ यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः क्रिया साध्यते । सा क्षेत्र-देवता नः नित्यं सुख- दायिनी भूयात् ।। : ३९ जिनके क्षेत्र का आश्रय लेकर साधु-साध्वी भगवंत द्वारा (मोक्षमार्ग की साधक) क्रिया साधी जाती है, वे क्षेत्रदेवता हमें हमेशा सुख देनेवाले बनें। विशेषार्थ : क्षेत्र के अधिष्ठायक देवों को क्षेत्रदेवता कहते हैं । ये क्षेत्रदेवता अपने-अपने क्षेत्रों को संभालते हुए सुयोग्य आत्माओं को अनुकूलता और दुर्जनों को दंड देते हैं । मोक्षमार्ग के साधक साधु-साध्वीजी भगवंत जिस क्षेत्र में निर्विघ्न आराधना कर रहे हैं, उसमें उस-उस क्षेत्र के क्षेत्रदेवता का भी उपकार होता है । इस दृष्टि से उपकारी क्षेत्रदेवता के प्रति कृतज्ञभाव व्यक्त करते हुए इस स्तुति में साधक कहता है कि, “हे क्षेत्रदेवता ! आपका प्रभाव सुनकर अज्ञानी जीव आपके पास भौतिक सुख की प्रार्थना करता है, परन्तु श्रुत के माध्यम से मुझे आज भौतिक सुख की अनर्थकारिता का ज्ञान हुआ है, इसलिए मैं भौतिक सुख का नहीं, आत्मिक सुख का इच्छुक हूँ । मुझे
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy