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________________ क्षेत्रदेवता की स्तुति-२ सूत्र परिचय : साधु-साध्वीजी भगवंत जिस क्षेत्र में रहकर अपनी साधना-आराधना करते हैं, उस क्षेत्र के देवता को ध्यान में रखकर इस स्तुति की रचना की गई है। अतः इसे 'खित्तदेवता-थुई' कहा जाता है । अवसर आने पर जो किसी के छोटे-से उपकार को भी याद किए बिना नहीं रहता वही मोक्षमार्ग का सच्चा साधक है । इसी बात का समर्थन इस स्तुति में देखने को मिलता है । जिन्होंने अपने क्षेत्र में रहने दिया, किसी भी प्रकार के उपद्रव के बगैर साधना करने दी, उन क्षेत्रदेवता को इस स्तुति द्वारा याद करके, यहाँ उनके प्रति कृतज्ञ भाव व्यक्त कर उनसे प्रार्थना भी की गई है कि, "हे क्षेत्रदेवता ! आप भविष्य में भी हमें साधना करने में अनुकूलता प्रदान करते रहें !" देवसिअ आदि प्रतिक्रमण में श्रुतदेवी की स्तुति बोलने के बाद यह थोय बोली जाती है ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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