________________
क्षेत्रदेवता की स्तुति - १
मूल सूत्र :
जीसे खित्ते साहू, दंसण - नाणेहिं चरण - सहिएहिं ।
साहंति मुक्ख - मग्गं, सा देवी हरउ दुरिआई । । १ । ।
पद-४, गाथा-१, संपदा-४, गुरुअक्षर-३, लघुअक्षर- ३३, कुल अक्षर-३६ अन्वय सहित संस्कृत छाया :
यस्याः क्षेत्रे साधवः, दर्शन ज्ञानाभ्यां चरण- - सहिताभ्याम् । साधयन्ति मोक्षमार्गं, सा देवी हरतु दुरितानि ।।१।।
शब्दार्थ :
३७
जिसके क्षेत्र में रहकर साधु- समुदाय ज्ञान, दर्शन और चारित्र सहित मोक्षमार्ग को साधता है, वे क्षेत्रदेवता पापों को, विघ्नों को, अनिष्टों आदि को दूर करें । विशेषार्थ :
इस सूत्र का विशेष अर्थ 'यस्याः क्षेत्रम् ' स्तुति जैसा ही होने से उससे संबंधित विशेष बातों को वहाँ से ही देख लें । परन्तु इस स्तुति की रचना में 'दंसण - नाणेहिं चरण सहिएहिं साहंति मुक्ख-मग्गं' शब्द मोक्षमार्ग की गहन विशेषताओं को संक्षेप में प्रगट करते हैं। मोक्षमार्ग की साधना दर्शन और ज्ञान दोनों से होती है, अकेले दर्शन या अकेले ज्ञान से नहीं । चारित्र सहित दर्शन और ज्ञान हो तो ही मोक्ष की साधना हो सकती है इसलिए बहुत शास्त्रों का अभ्यास या सम्यग् दर्शन की शुद्धि होने के बावजूद यदि पाँच महाव्रत, दस यतिधर्म, दस प्रकार के वैयावृत्त्य, नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्ति, बारह प्रकार के तप, क्रोधादि चार कषायों का निग्रह आदि चारित्र के गुण न हों तो मोक्ष नहीं मिल सकता । अतः चारित्र सहित ज्ञान और दर्शन की साधना करनेवाले साधु भगवंतों के मोक्षमार्ग में आनेवाले विघ्नों को क्षेत्रदेवता नाश करें ऐसी प्रार्थना इस सूत्र में की गई है ।