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क्षेत्रदेवता की स्तुति-१
सूत्र परिचय :
इस सूत्र के द्वारा क्षेत्रदेवता की स्तुति की जाती है इसलिए इसे 'खित्तदेवया थुई' कहा जाता है ।
दैवसिक प्रतिक्रमण में रत्नत्रयी की शुद्धि के लिए तीन कायोत्सर्ग करने के बाद श्रुतदेवता और क्षेत्रदेवता के उपकार की स्मृति के लिए काउस्सग्ग करके उनकी स्तुति बोली जाती है । तब क्षेत्रदेवता की स्तुति के लिए पुरुष यह स्तुति बोलते हैं, जब कि स्त्रियाँ ‘यस्याः क्षेत्रम्' की स्तुति बोलती हैं। पुरुष भी पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक तथा मांगलिक प्रतिक्रमण में इसके बदले ‘यस्याः क्षेत्रम्' बोलते हैं ।
क्षेत्र की अधिष्ठायिका देवी अपने क्षेत्र में रहे हुए साधुओं के अनिष्टों, उपद्रवों, विघ्नों आदि को दूर करती हैं तथा उनका ध्यान रखने रूप भक्ति करती हैं, इसलिए उनके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने के लिए यह स्तुति बोली जाती है ।
यह सूत्र सामाचारी की परंपरा से प्राप्त हुआ है। इसका कोई विशेष आधार स्थान नहीं है ।