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श्रुतदेवता की स्तुति-२ स्थापित करने के लिए यहाँ उनके बाह्य स्वरूप का वर्णन करते हुए तीन विशेषणों का प्रयोग किया गया है । सरस्वती देवी की आँखें कमल की पंखुड़ियों जैसी विशाल हैं । उनका मुख खिले हुए कमल के समान है और उनका वर्ण कमल के गर्भ जैसा श्वेत है ।
'आकृतिः गुणान् कथयति' इस कथन के अनुसार किस व्यक्ति में कितने गुण हैं, यह उसकी आकृति से जाना जा सकता है । उसी प्रकार श्रुतदेवी की आकृति के दर्शन मात्र से ही जाना जा सकता है कि वे कितनी पुण्यशाली एवं गुणवान होंगी । गुणसंपन्न व्यक्ति से प्रार्थना करने से प्रार्थना का फल मिलता है । इसलिए साधक, माँ शारदा से श्रुत की सिद्धि के लिए प्रार्थना करता है । प्रार्थित श्रुतदेवी भी साधक की अनेक प्रकार से सहायता कर श्रुतज्ञान की वृद्धि में कारण बनती है ।
यह स्तुति बोलते समय साधक देदीप्यमान स्वरूपवाली सरस्वती देवी को स्मृतिपटल पर स्थापित करके प्रार्थना करे कि -
"हे माँ शार्दै ! आप जानती हैं कि मुझे सभी कषायों
और कर्मों के बंधनों से मुक्त होकर सदा सुखी होने के लिए मोक्ष में जाना है । श्रुतज्ञान के बिना मोक्षमार्ग में गमन शक्य नहीं है, पर मुझमें ऐसा सामर्थ्य नहीं है कि मैं श्रुत के पार को प्राप्त कर सकूँ । आज तक मैंने आपसे कई बार प्रार्थना की है परन्तु वह मिथ्या-श्रुत प्राप्त करने और मान को बढ़ाने के लिए की है। आज आपसे मान को तोड़ने के लिए सम्यक् श्रुत की प्रार्थना करता हूँ । आप कृपा करके मुझे श्रुतज्ञान के विषय में सिद्धि मिले, ऐसा सामर्थ्य प्रदान करें ।"