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सूत्र संवेदना-५ महाराज ने ललितविस्तरा ग्रंथ में, पू. भद्रबाहुस्वामीजी महाराज ने आवश्यक नियुक्ति में तथा प्रतिक्रमण हेतु गर्भ ग्रंथ में भी बताई है । मूल सूत्र :
ज्ञानादि-गुणयुतानां, नित्यं स्वाध्याय-संयमरतानाम् ।
विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ।।१।। अन्वयः ज्ञानादि-गुणयुतानाम् नित्यं स्वाध्याय-संयमरतानाम् । सर्वसाधूनाम् भवनदेवी सदा शिवं विदधातु ।। शब्दार्थ :
हे भवन देवी ! ज्ञान, दर्शन और चारित्र गुण से युक्त और हमेशा स्वाध्याय तथा संयम में मग्न रहनेवाले साधुओं को उपद्रव रहित करें । विशेषार्थ : __ हे भवन देवी ! जो महात्मा सच्चे सुख के लिए निकले हैं, जो हमेशा ज्ञान, दर्शन और चारित्र के लिए उद्यमी हैं, पाँच प्रकार के स्वाध्याय का प्रयत्न करते हैं और सत्रह प्रकार के संयम में स्थिर हैं, उन महापुरुषों को आप उपद्रव रहित करें, उनका कल्याण करें और उनको शीघ्र आत्मिक सुख की प्राप्ति हो, ऐसा अनुकूल वातावरण बनाएँ । इसके विशेष अर्थ क्षेत्रदेवता की स्तुतियों के अनुसार समझें।