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सूत्र संवेदना-५
गुणों से युक्त होने के कारण श्रुतदेवी श्रीसंघ के लिए माननीय, स्मरणीय और पूजनीय है।
पूज्य श्रुतदेवी को स्मृतिपट पर स्थापित करके उसे संबोधित कर साधक कहता है -
"हे माँ श्रुतदेवी ! इस जगत् में जिन्हें श्रुतसागर के प्रति अत्यंत भक्ति है, जो श्रुतज्ञान को प्राप्त करने का सतत प्रयत्न कर रहे हैं, ऐसे भक्तों के ज्ञानावरणीय कर्म के समूह के नाश के लिए आप सतत प्रयत्न
करें।" जिज्ञासाा : जिनके हृदय में श्रुतज्ञान के प्रति गहरा भक्तिभाव है, जो श्रुतज्ञान के लिए सतत यत्न करते हैं, उन साधकों की ऐसी प्रवृत्ति से ही कर्म का नाश होनेवाला है, तो फिर श्रुतदेवी को इस प्रकार प्रार्थना करने का क्या कारण है ?
तृप्ति : किसी भी कर्म का नाश अपने प्रयत्न से ही होता है, यह बात सत्य है; फिर भी कर्मनाश के लिए किया गया प्रयत्न बाह्य अनुकूलता आदि की अपेक्षा तो रखता ही है । इष्ट शास्त्र, उस शास्त्र को समझाने वाले सद्गुरु भगवंत या स्वाध्याय के लिए सानुकूल स्थल आदि मिलें, तो उत्साह में, प्रयत्न में वेग आता है और ऐसी अनुकूलता न मिले तो कई बार उत्साह मंद भी हो जाता है और कभी नाश भी होता है। इसीलिए यह स्तुति बोलकर श्रुतदेवी से प्रार्थना की जाती है और प्रार्थना से प्रसन्न हुई श्रुतदेवी भी योग्य संयोगों को प्राप्त करवाकर कर्मक्षय में जरूरी निमित्त प्रदान करती है। जैसे प.पू.आ.श्री हेमचन्द्रसूरिजी म.सा. में योग्यता होने के बावजूद सरस्वती देवी की साधना से विशिष्ट क्षयोपशम खिला। पुण्य की कमी के कारण कभी