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________________ सूत्र संवेदना-५ तीर्थंकर परमात्मा जब विहार करते हैं, तब देवों द्वारा रचित नौ सुवर्ण कमलों की श्रेणी मानो ऐसा कहती है कि - 'जैसे हम कमल हैं वैसे ही श्री जिनेश्वर देव के चरण भी कमल हैं । इस तरह कमलों के साथ कमलों का संयोग हुआ है। समान से समान का मेल हुआ है । यह प्रशंसनीय एवं आनंददायी हुआ है।' __ सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः - ऐसे जिनेश्वर परमात्मा शिव के लिए हों ! सुवर्ण कमल के ऊपर पैर रखकर विहार करनेवाले सभी जिनेन्द्र हमारे कल्याण के लिए हों। प्रभु की स्तुति करने का एक ही लक्ष्य होता है - प्रभु जैसा बनना । प्रभु स्वयं निर्द्वन्द्व अवस्था को प्राप्त करके मोक्ष के महासुख का आनंद ले रहे हैं। साधक भी इन शब्दों के द्वारा उसी शिवसुख की प्रार्थना करता है । इस गाथा को बोलते हुए केवलज्ञान प्राप्त कर सुरनिर्मित सुवर्ण कमल के ऊपर पादार्पण करके पृथ्वीतल को पावन करते हुए सभी अरिहंत भगवंतों को याद कर उनको वंदना करते हुए कहना चाहिए कि, __ “हे विभो ! आप तो कल्याणकारी स्थान को प्राप्त कर चुके हैं। हमें भी आप परम कल्याण के कारणभूत शिवस्थान प्रदान करें ।" । कषायतापादित-जन्तु-निर्वृति करोति यो जैनमुखाम्बुदोद्गतः स शुक्र मासोद्भव-वृष्टि-सत्रिभो दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम्जिस वाणी का समूह जिनेश्वर के मुखरूपी मेघ से प्रगट होकर कषाय के ताप से पीड़ित प्राणियों को शांति देता है और जो ज्येष्ठ महीने की (पहली) वर्षा जैसा है, वह मेरे ऊपर तुष्टि की वर्षा करें ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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