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________________ सकलतीर्थ वंदना ३२७ भगवंत सदेह विचर रहे हैं, पर भरत-ऐरवत क्षेत्र में इस पाँचवें आरे में कोई तीर्थंकर विचरते नहीं है। आज से लगभग ८३ लाख पूर्व0 से अधिक समय पहले इन बीस तीर्थंकरों का जन्म महाविदेह क्षेत्रों की अलग-अलग विजयों के राजकुल में हुआ था। तब भरत क्षेत्र में सतरहवें श्री कुंथुनाथ और अट्ठारहवें श्री अरनाथ भगवान के बीच का समय चल रहा था। उनके ६ श्री स्वयंप्रभ स्वामी ७ श्री ऋषभानन स्वामी ८ श्री अनंतवीर्य स्वामी इ. पश्चिम धातकी खंड के महाविदेह में विचरते ४ जिन ९ श्री सुरप्रभ स्वामी १० श्री विशालप्रभ स्वामी ११ श्री वज्रधर स्वामी १२ श्री चन्द्रानन स्वामी ई. पूर्व पुष्करार्ध द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में विचरते ४ जिन १३ श्री चंद्रबाहु स्वामी १४ श्री ईश्वर स्वामी १५ श्री भुजंगदेव स्वामी १६ श्री नेमप्रभ स्वामी उ. पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में विचरते ४ जिन १७ श्री वीरसेन स्वामी १८ श्री महाभद्र स्वामी १९ श्री देवयश स्वामी २० श्री अजितवीर्य स्वामी इन सभी तीर्थंकरों का देह का वर्ण सुवर्ण और प्रमाण ५०० धनुष का होता है। उनका च्यवन कल्याणक - अषाढ वद १ जन्म कल्याणक - चैत्र वद १० दीक्षा कल्याणक - फागुन सुद ३ केवलज्ञान कल्याणक - चैत्र सुद १३ एवं निर्वाण कल्याणक - श्रावण सुद ३ का है । 10. १ पूर्व - ७०५६० अबज वर्ष ।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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