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सूत्र संवेदना-५ के लिए कई जिन चैत्यों का निर्माण हुआ है, उनमें बिराजमान सभी जिन प्रतिमाएँ सम्यग्दर्शन आदि गुणों की प्राप्ति और वृद्धि में निमित्त बनती हैं । मैं उन सभी को वंदन करता हूँ।
शाश्वत-अशाश्वत स्थापना-जिन की वंदना करने के बाद अब भावजिन की तथा सिद्ध भगवंतों की वंदना करते हैं । अ.जंगम तीर्थों को तथा सिद्ध परमात्मा को वंदना : १. विहरमान तीर्थंकरों को तथा सिद्ध परमात्मा को वंदनाः
विहरमान वंदु जिन वीश, सिद्ध अनंत नमुं निशदिश ।।१३।। गाथार्थ :
बीस विहरमान जिन तथा आज तक के अनंत सिद्धों को मैं हमेशा नमस्कार करता हूँ। विशेषार्थ: विहरमान वंदु जिन वीश :
वर्तमान काल में सदेह तीर्थंकर के रूप में विचरण करते हुए अर्थात् समवसरण में बैठकर देशना देते हुए अथवा केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद तीर्थंकर नामकर्म के उदय को भोगते हुए, साक्षात् विचरण करते हुए श्री तीर्थंकर भगवंत ही भावजिन हैं। वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में देवाधिदेव श्री सीमंधरस्वामी आदि बीस तीर्थंकर 9. बीस विहरमान जिन के नाम :
अ. जंबूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में विचरते ४ जिन १. श्री सीमंधर स्वामी २ श्री युगमंधर स्वामी ३ श्री बाहु स्वामी ४ श्री सुबाहु स्वामी आ. पूर्व धातकी खंड के महाविदेह क्षेत्र में विचरते ४ जिन ५ श्री सुजात स्वामी