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________________ सूत्र संवेदना-५ करके अजेय ऐसे आंतरिक शत्रुओं के ऊपर जय प्राप्त करना, सामान्य व्यक्ति का कार्य नहीं है। यह कठिन कार्य तो विरल ऐसे वीर प्रभु ही कर सकते हैं । परोक्षाय कुतीर्थिनाम् - मिथ्यात्वियों के लिए परोक्ष (ऐसे श्री वर्धमान स्वामी को नमस्कार हो।) झूठे (मिथ्या) मत का प्रचार करनेवाले कुतीर्थिक कहलाते हैं। जगत् के सभी पदार्थ अनेकान्तरूप हैं। अनंत धर्मात्मक उन पदार्थों का उस रूप में निरूपण करना सन्मत है, जब कि इन्हीं पदार्थों को किसी एक दृष्टि से देखकर उनका एकांगी निरूपण करना कुमत है। ऐसे कुमत को चलानेवाले कुतीर्थिक हैं। कदाग्रह के कारण ऐसे कुतीर्थिक कभी भी प्रभु द्वारा प्ररूपित पदार्थों को उस रूप में नहीं देख सकते । उनकी बुद्धि का विषय नहीं बनने के कारण प्रभु या प्रभु द्वारा बताया हुआ मार्ग उनके लिए प्रत्यक्ष नहीं बन सकता; इसलिए प्रभु कुतीर्थिकों के लिए परोक्ष हैं, ऐसा कहा जाता है। यह गाथा बोलते हुए उपर्युक्त तीनों विशेषणों से विशिष्ट बाह्य और आभ्यंतर समृद्धि के स्वामी वीर प्रभु को स्मृतिपट पर स्थापित कर, दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर प्रार्थना करनी चाहिए - "हे प्रभु ! कर्म के साथ स्पर्धा में उतरकर आपने तो विजय की वरमाला प्राप्त कर ली है, पर हम तो कर्म की जंजीरों में अब तक फंसे हुए हैं। कुतीर्थी आपको समझ नहीं सकते, यह तो समझ में आता है; परन्तु आप की ही संतान होते हुए, आपका शुद्ध स्वरूप हमारे लिए क्यो प्रत्यक्ष नहीं ? हे नाथ ! इस नमस्कार के फलरूप आप
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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