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गई है और अंतिम गाथा में रोमांचित शब्दों द्वारा स्वयं को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति हो एवं हृदय में प्रभु के वचनों का वास हो, ऐसी सुंदर भावना व्यक्त की गई है ।
सूत्र
संवेदना
मूल सूत्र :
नमोऽस्तु वर्धमानाय, स्पर्धमानाय कर्मणा । तज्जयावाप्तमोक्षाय, परोक्षाय कुतीर्थिनाम् । । १ । ।
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येषां विकचारविन्द - राज्या, ज्यायः - क्रम - कमलावलिं दधत्या । सदृशैरिति सङ्गतं प्रशस्यं कथितं सन्तु शिवाय ते जिनेन्द्राः ||२|| कषायतापार्दित-जन्तु - निर्वृतिं करोति यो जैनमुखाम्बुदोद्गतः । शुक्र - मासोद्भव - वृष्टि - सन्निभो, दधातु तुष्टिं मयि विस्तरो गिराम् ||३|| अन्वय तथा गाथार्थ :
कर्मणा स्पर्धमानाय, तज्जयावाप्तमोक्षाय,
कुतीर्थिनां परोक्षाय, वर्धमानाय नमोऽस्तु ।।१।।
जो कर्म के साथ स्पर्धा करनेवाले हैं, कर्मों पर जय प्राप्त करके जिन्होंने मोक्ष प्राप्त किया है तथा जो मिथ्यावादियों के लिए परोक्ष हैं वैसे वर्धमानस्वामी को मेरा नमस्कार हो ।।१।।
येषां ज्यायः - क्रम-कमलावलिं दधत्या विकचारविन्द - राज्या 'सदृशैः सङ्गतं प्रशस्यम्' इति कथितं ते जिनेन्द्राः शिवाय सन्तु || २ || जिन जिनेश्वर के श्रेष्ठ चरण कमल की श्रेणी को धारण करनेवाली (देवनिर्मित सुवर्ण) विकसित कमलों की पंक्ति मानो कह रही हो कि, 'समान लोगों के साथ समागम होना प्रशंसनीय है' वे जिनेश्वर परमात्मा मोक्ष के कारण हों ।।२।।