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नमोऽस्तु वर्धमानाय
सूत्र परिचय:
यह श्री वर्धमान स्वामी अर्थात् हमारे आसन्न उपकारी चरम तीर्थपति श्री वीरप्रभु की स्तुति है । इसलिए इसे 'वर्धमान स्तुति' के नाम से भी जाना जाता है।
छ: आवश्यक की पूर्णाहुति के बाद नमोऽर्हत् से मंगलाचरण कर यह सूत्र मंगल स्तुति के रूप में बोला जाता है । इस अति सुंदर काव्य के रचयिता कोई अज्ञात महात्मा है, परन्तु श्री तिलकाचार्यजी द्वारा रचित सामाचारी में यह स्तुति पाई जाती है । संस्कृत भाषा के तीन अलग-अलग गेय छंदों में इस स्तुति की रचना है । समूह में भावपूर्वक इसे गाते हुए वीर प्रभु की अनेक अद्भुत विशेषताओं से चित्त रंजित हो उठता है ।
परंपरा के अनुसार प्रथम स्तुति अधिकृत जिन की, दूसरी स्तुति सर्व जिन की और तीसरी आगम अथवा श्रुतज्ञान की होती है। इसमें भी पहली गाथा में वर्धमान स्वामी को नमस्कार किया गया है, दूसरी गाथा में चौंतीस अतिशयादि ऋद्धि संपन्न सभी जिनेश्वरों को प्रार्थना की