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सूत्र संवेदना - ५
दक्षिण विभाग में आए तीन क्षेत्र और तीन पर्वतों पर कुल
मिलाकर १५ चैत्य हैं ।
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(१) उसमें भरत क्षेत्र में ३ शाश्वत चैत्य हैं । २ शाश्वत चैत्य उसके उत्तर में रहे हुए हिमवंत पर्वत पर स्थित पद्मद्रह में से निकलती गंगा और सिंधु नदियों के प्रपातकुंड में हैं। तीसरा चैत्य भरत क्षेत्र के मध्य में स्थित दीर्घ वैताढ्यपर्वत के ( सिद्धायतन नाम के) शिखर के ऊपर है।
(२) भरतक्षेत्र के ऊपर, उत्तर में हिमवंत नाम का वर्षधर पर्वत है | उसके ऊपर पद्मद्रह में एक चैत्य है और उसके शिखर के ऊपर एक चैत्य है। इस प्रकार हिमवंत पर्वत के कुल २ चैत्य हैं। (३) हिमवंत पर्वत के बाद उसके उत्तर में हिमवंत क्षेत्र है । उसमें भरत क्षेत्र के जैसे ही कुल ३ चैत्य हैं । (२ चैत्य रोहिता और रोहितांशा नदी के प्रपातकुंड में और १ चैत्य वृत्तवैताढ्य पर्वत पर )
(४) हिमवंत क्षेत्र के बाद उसके उत्तर में महाहिमवंत नाम का वर्षधर पर्वत है। उसमें भी हिमवंत पर्वत के जैसे २ चैत्य है । (१ शिखर के ऊपर और १ महापद्मद्रह में )
(५) उसके बाद उत्तर में हरिवर्षक्षेत्र है उसमें भी पूर्व के क्षेत्र के जैसे ३ चैत्य हैं (२ चैत्य हरिकान्ता और हरिसलिला नदीं के प्रपातकुंडों में और १ चैत्य वृत्तवैताढ्य पर्वत पर )
5. प्रपातकुंड :- महानदियाँ जिन-जिन पर्वतों से निकली हैं, उन-उन पर्वतों के नीचे उन-उन नदी नामवाले प्रपातकुंड है । उस नदी का प्रवाह उस कुंड में गिरकर ही बाहर निकलता है। इसी हर एक नदी के उद्गम स्थान के नीचे उसी नाम का प्रपातकुंड है।
6. वर्षधर पर्वत - वर्ष अर्थात् क्षेत्र, उसकी मर्यादा को धारण करनेवाले अर्थात् दो क्षेत्रों के बीच
में सरहद पर रहे पर्वत को वर्षधर पर्वत कहते हैं।
7. वृत्तवैताढ्य - गोलाकार रूप स्थित वैताढ्य पर्वत