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सकलतीर्थ वंदना
२९१ फिर लवण समुद्र है, उसके बाद दूसरा द्वीप धातकीखंड, उसके चारों
ओर कालोदधि समुद्र और उसके बाद तीसरा पुष्करवरद्वीप है। इन तीन द्वीप में से तीसरे पुष्करवर द्वीप के मध्य में आए मानुषोत्तर पर्वत तक मनुष्यों की बस्ती होती है और पुष्करवर द्वीप के मानुषोत्तर पर्वत के बाद मनुष्यों की बस्ती नहीं होती अर्थात् मनुष्यों की बस्ती सिर्फ २१/, द्वीप में ही होती है । ___ति लोक में कुल ३२५९ शाश्वत चैत्य हैं। उनमें जंबूद्वीप के ६३५, धातकी खंड के १२७२ और पुष्करद्वीप के १२७२ मिलाकर कुल ३१७९ चैत्य मनुष्य क्षेत्र में है; जब कि ८० चैत्य मनुष्य क्षेत्र के बाहर रहे हुए हैं। जंबूद्वीप से लेकर तेरहवें रूचक द्वीप तक शाश्वत तीर्थ हैं। इन सभी तीर्थों में कुल मिलाकर तीन लाख, इकानबें हज़ार, तीन सौ बीस शाश्वत प्रतिमाएँ हैं। ये सभी शाश्वत प्रतिमाएँ ५०० धनुष्य की ऊँचाई वाली हैं। उन सभी का विवरण नीचे दिया गया है : १. जंबूद्वीप के भरत आदि क्षेत्र के शाश्वत चैत्य : _____३० चैत्य और ३६०० प्रतिमाएँ
ति लोक के मध्य में १,००,००० योजन जितना जंबूद्वीप है। जंबूद्वीप के मध्य में स्थित मेरुपर्वत के दक्षिण में निषधपर्वत है और उत्तर में नीलवंत पर्वत है। इन दोनों पर्वतों के बीच महाविदेह क्षेत्र है। निषध पर्वत के दक्षिण में क्रमशः महाहिमवंत और हिमवंत ऐसे दो पर्वत हैं । इन तीन पर्वतों के बीच हिमवंत और हरिवर्ष क्षेत्र है; ये दोनों अकर्मभूमियाँ हैं । हिमवंत पर्वत के दक्षिण में जंबूद्वीप के दक्षिण कोने पर भरतक्षेत्र है जो कर्मभूमि है। 4. इस रूचक द्वीप की ४० दिक्कुमारिकाएँ तीर्थंकर परमात्माओं का सूतीकर्म करने आती हैं।