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सकलतीर्थ वंदना
२९३ (६) उसके बाद उत्तर में निषध नाम का वर्षधर पर्वत है। हर एक
वर्षधर पर्वत की तरह यहाँ भी २ चैत्य हैं (१ शिखर पर और १ तिगिंच्छिद्रह में) जंबूद्वीप के उत्तर विभाग में भी दक्षिण की तरह तीन क्षेत्र और तीन
पर्वत पर कुल मिलाकर निम्नोक्त १५ चैत्य है । (७) मेरुपर्वत के उत्तर में नीलवंतपर्वत है, जिसमें दूसरे वर्षधर
पर्वतों की तरह २ चैत्य हैं (१ शिखर पर और १ केशरीद्रह में) (८) नीलवंत पर्वत के बाद रम्यक्क्षेत्र है, उसमें ३ चैत्य हैं (२ चैत्य
नरकांता और नारीकांता नदी के प्रपातकुंड में और १ वृत्तवैताढ्य
पर्वत पर) (९) उसके बाद रुक्मिपर्वत है। उसमें दो चैत्य हैं। (१ शिखर पर
और १ महापुंडरीकद्रह में) (१०) रुक्मि पर्वत के उत्तर में हिरण्यवंतक्षेत्र है। उसमें ३ चैत्य हैं (२
सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदी के प्रपातकुंड में और १ वृत्त
वैताढ्यपर्वत पर) (११) उसके बाद अंत में शिखरी नाम का वर्षधर पर्वत है, जिसमें
पूर्ववत् २ चैत्य हैं। (१ शिखर पर और १ पुंडरीकद्रह में) (१२) जंबूद्वीप के उत्तर के बिल्कुल किनारे पर ऐरवत क्षेत्र हैं। उसके
मध्य में दीर्घवैताढ्य पर्वत के शिखर पर एक चैत्य है तथा रक्ता एवं रक्तवती नदी के प्रपातकुंड में २ चैत्य हैं। इस प्रकार कुल ३ चैत्य हैं। इन सब चैत्यों में १२० प्रतिमाएँ हैं (१०८ स्तूप की + १२ द्वार की) इस तरह जंबूद्वीप के भरतादि क्षेत्रों में कुल ३० शाश्वत चैत्य और ३६०० (३० x १२०) शाश्वत प्रतिमाएँ स्थित हैं।