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सकलतीर्थ वंदना
२. अधोलोक के चैत्यों की वंदना : (गाथा ७-८ )
सात कोड ने बहोंतेर लाख, भवनपतिमां देवल भाख ।।७।।
एकसो अंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण, तेरशें कोड नेव्याशी कोड, साठ लाख वंदूं करजोड ।।८।। शब्दार्थ
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भवनपति के आवासों में सात करोड़ और बहत्तर लाख (७,७२,००, ०००) जिनचैत्य हैं, ऐसा शास्त्र में कहा गया है। उन चैत्यों में एक सौ अस्सी जिनबिंब हैं । सब मिलाकर जो (तेरह सो = करोड़) तेरह अरब नव्वासी करोड़ एवं साठ लाख) १३, ८९, ६०, ००,००० जिनबिंब हैं। उनको मैं दो हाथ जोड़कर वंदना करता हूँ ।
विशेषार्थ :
अधोलोक सात राजलोक प्रमाण है। उसमें रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियाँ हैं। उसमें सर्वत्र शाश्वत चैत्य नहीं हैं । मात्र प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी के पिंड में, भवनपति और व्यंतर निकाय के असंख्यात आवासों में ही शाश्वत चैत्य हैं। अन्य पृथ्वी में मात्र नारकी के जीव रहते हैं ।
यह रत्नप्रभा पृथ्वी जिसके ऊपर हम रहते हैं उसकी मोटाई १,८०,००० योजन और लंबाई-चौड़ाई एक राजलोक है। उसमें ऊपर नीचे के १००० योजन छोड़कर बीच में १,७८,००० योजन के पिंड में दस भवनपति के देवों के ७ करोड़ और ७२ लाख (७,७२,००,०००) भवन (आवास) हैं। उनमें एक-एक चैत्य है।
इन दस भवनपतियों में प्रथम, असुरकुमार के भवन में जो चैत्य हैं, वे ५० योजन लंबे, २५ योजन चौड़े और ३६ योजन ऊँचे कहे गए हैं। 2 अर्थात् लगभग ६०० कि.मी. लंबे, ३०० कि.मी. चौड़े और ४३२ कि.मी. ऊँचे कहे गए हैं। जबकि बाकी के नौ निकाय के जिनमंदिर २५ योजन 2. लोकप्रकाश- क्षेत्रलोक सर्ग २३ गाथा ३११-३१५