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सकलतीर्थ वंदना
२८५
२८५
१८०
१८०
५०,०००
६
प्राणत
देवलोक नाम चैत्य संख्या प्रत्येक चैत्य में कुल बिंब
| बिंब संख्या पहला | सौधर्म ३२,००,००० १८० ५७,६०,००,००० दूसरा | ईशान २८,००,००० १८० ५०,४०,००,००० तीसरा सनत्कुमार | १२,००,०००
२१,६०,००,००० चौथा | माहेन्द्र | ८,००,०००/ १४,४०,००,००० पाँचवा ब्रह्मलोक | ४,००,०००
७,२०,००,००० छट्ठा | लान्तक
१८० ९०,००,००० सातवाँ | महाशुक्र ४०,०००
७२,००,००० आठवाँ सहस्त्रार
१०,८०,००० नौंवा | आनत
७२,००० दसवाँ ग्यारह आरण
५४,००० बारह अच्युत ग्रैवेयक __ ३१८ १२०
३८,१६० अनुत्तर ५/ १२०
६०० कुल | ८४,९७,०२३|
१,५२,९४,४४,७६० ये गाथाएँ बोलते समय ऊर्ध्वलोक के शाश्वत चैत्य, उसमें रहनेवाली प्रशमरस निमग्न अलौकिक प्रभु प्रतिमाएँ और उनकी सहृदय भक्ति करनेवाले देवों को मानसपटल पर उपस्थित कर उनकी वंदना करते हुए साधक को सोचना चाहिए कि,
“धन्य हैं वे देव और देवेन्द्र जिनके पास भोग भोगने की उत्कृष्ट सामग्री होने के बावजूद वे उसमें ज़िन्दगी की सफलता नहीं मानते और कृपालु भगवंत की