SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ सूत्र संवेदना-५ किंपुरुषकंठ, १०८ महोरगकंठ, १०८ गंधर्वकंठ, १०८, वृषभकंठ, ये सभी अश्वकंठ से वृषभकंठ तक की वस्तुएँ शोभा के लिए होती हैं। __ और पुष्प की', माला की', चूर्ण की', सिद्धार्थ की', लोमहस्त की (मोर के पंख की), गंध की', वस्त्र की और आभरण की ऐसे ८ जाति की प्रत्येक १०८-१०८ चंगेरी (एक प्रकार का पात्र विशेष) होती है। इसी प्रकार आठ प्रकार के वस्त्र होते हैं, वे सभी १०८ होते हैं। वैसे ही १०८ सिंहासन, १०८ छत्र, १०८ चामर और १०८ ध्वज होते हैं। तदुपरांत तेल', कोष्ठ', चोयग, तगर, इलायची', हरताल', हिंगलोक', मनःशील और अंजन' : ये नौ चीज़ों को रखने के लिए नौ प्रकार की १०८-१०८ पेटियाँ होती हैं। ये सभी वस्तुएँ भी रत्नमय और अति मनोहर होती हैं। ऊर्ध्वलोक के कुल चैत्य और जिनबिंब : पहले देवलोक में कुल ३२,००,००० विमान हैं और उन सब में एक-एक चैत्य है। हर चैत्य में ऊपर बताए गये हिसाब से १८० जिनप्रतिमाएँ हैं। उससे वहाँ कुल ५७,६०,००,००० जिनबिंब हैं। दूसरेतीसरे आदि बारह देवलोक में इसी तरह चैत्य तथा जिनबिंब हैं, उन सभी देवलोक की गिनती करें तो, नीचे बताए गए हिसाब से ऊर्ध्वलोक में १५२,९४,४४,७६० विशाल जिनबिंब होते हैं।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy