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________________ सकलतीर्थ वंदना सूत्र परिचय : इस सूत्र के नाम से ही पता चलता है कि इस सूत्र में तीन लोक में स्थित सभी तीर्थों की वंदना की गई है। जो तारे उसे तीर्थ कहते हैं। जो नदी, समुद्र आदि से पार उतारें, वे द्रव्यतीर्थ कहलाते हैं और जो राग-द्वेष से भरे भवसागर से पार उतारें, उन्हें भावतीर्थ कहते हैं। __ भावतीर्थ भी दो प्रकार के होते हैं : १ स्थावर और २. जंगम। जो स्थिर हो, वह स्थावरतीर्थ कहलाता है और जो चलता-फिरता हो, वह जंगमतीर्थ कहलाता है। इस सूत्र की शुरुआत में स्थावर तीर्थ की और अंत में जंगम तीर्थ की वंदना की गई है। स्व-सामर्थ्य से भवसागर से पार उतरने और उतारने की शक्ति श्री अरिहंत परमात्मा में ही है, जिससे वे तो तीर्थ हैं ही, साथ ही उनसे सम्बन्धित उनके नाम, स्थापना और द्रव्य निक्षेप भी तारने में समर्थ होते हैं, इसलिए वे भी तारक तीर्थ बनते हैं। जिस काल और जिस क्षेत्र में प्रभु साक्षात् विद्यमान नहीं होते, उस काल और उस क्षेत्र में नामादि निक्षेप ही योग्य जीवों को तारने के
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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