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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२७१ बिल्कुल अलिप्त रहती हैं। किसी भी प्रकार के प्रलोभन में वे कभी भी नहीं फँसती । __ अखंड शीलवाली महासतियाँ विरल होती हैं। अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक इन महासतियों का गुण वैभव गुणेच्छु साधकों की स्मृति में ताज़ा है, इसीलिए कहा गया है कि सैंकड़ों वर्ष पहले हुई महासती सीता या महासती दमयंती का यश पटह (यशगान करते नगाड़े) आज भी तीनों लोक में गुंजते हैं। इन सतियों ने अपने ऊपर कैसा नियंत्रण रखा होगा कि रूप, वैभव, प्रभाव आदि से संपन्न पुरुष भी उनकी पूजा करते थे, उनके साथ भोग भोगने के लिए कितनी ही मिन्नतें माँगते थे तो भी यह वीरांगनाएँ विषयाभिलाष के आधीन नहीं बनीं, अपने संयम को सुरक्षित रखा एवं शीलव्रत को प्रज्वलित किया।
सूत्र की मर्यादा के कारण यहाँ तो यत्किंचित् सतियों का नामोल्लेख हुआ है, परन्तु उसके आधार पर जगत् में ऐसी जो-जो सतियाँ हुई हैं, उन सबका स्मरण करना चाहिए।
"निष्कलंक शीलव्रतवाली हे महासतियाँ ! आपकी भावपूर्वक वंदना करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु के मार्ग पर अडिग रहूँ, शीलादि धर्म का अखंड पालन करूँ और उसके द्वारा वीतराग दशा तक पहुँचने का सामर्थ्य मुझे भी प्राप्त हो !” यहाँ यह सूत्र शब्दों से पूर्ण होता है, परन्तु गुण-संपन्न आत्माओं की स्मृति तो हर पल रखनी है। उनकी गुणसमृद्धि अपना लक्ष्य है। उनके प्रति अहोभाव, उनकी गुणसमृद्धि को आत्मसात् कर चरितार्थ करने का अमोघ साधन है।