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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२६९ ने इन सात बहनों का उपयोग किया । वररुचि जो श्लोक बोलते थे, वह यक्षा को एक बार सुनते ही याद हो जाता था, दूसरी बहन को दो बार, इस प्रकार सातवीं बहन को सात बार सुनने पर याद रहता था। अपनी ऐसी विशिष्ट बुद्धि का उपयोग इन सातों ने शासन प्रभावना के लिए किया ।
इन सातों बहनों ने श्रीयक मंत्री के साथ दीक्षा ली थी। एक बार श्रीयक मुनि को आराधना करवाने के लिए प्रेरणा देकर पहले नवकारशी, फिर पोरिसी... इस प्रकार आगे बढ़ते हुए यक्षा साध्वी ने श्रीयक मुनि से उपवास करवाया । रात्रि में शरीर की पीड़ा सहन न होने से मुनि की मृत्यु हुई।
यक्षा साध्वीजी को पश्चात्ताप होने लगा कि उनके कारण ही भाई मुनि की मृत्यु हुई है। उनको स्वस्थ करने के लिए शासन देव उन्हें श्री सीमंधर परमात्मा के पास ले गए। प्रभु ने उनको बताया कि श्रीयकमुनि की मृत्यु आयुष्य पूर्ण होने से, परम समाधिपूर्वक हुई है। श्री सीमंधर प्रभु ने यक्षा साध्वी को सांत्वना देने के लिए चार चूलिकाएँ दीं, जिनमें से दो दशवैकालिक के अंत में और दो श्री आचारांग के अंत में स्थापित की गईं हैं। इस प्रकार इन साध्वीजी के कारण हमें इस विषम काल में विहरमान भगवंत के अद्भुत पावनकारी वचन मिले।
अनुक्रम से इन सातों बहनों ने उत्तम चारित्र का पालन करके सद्गति को प्राप्त किया और भवांतर में मोक्ष में जाएँगी।
"हे महासतियों ! आपको वंदन कर आप जैसा तीव्र
और निर्मल ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम हमें भी प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना करते हैं।"