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________________ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय २६७ भक्ति की । आचार्यश्री को जब केवलज्ञान की जानकारी हुई, तब आत्म हितेच्छु आचार्यश्री ने स्वयं अपने केवलज्ञान के विषय में प्रश्न किया । उत्तर मिलते ही वे गंगा के किनारे गए और नदी उतरते हुए उन्हें भी केवलज्ञान हुआ। यह कैसा अनुपम प्रसंग है, जहाँ गुरुभक्ति करते हुए शिष्या को प्रथम केवलज्ञान हुआ और केवली शिष्या के वचन से गुरु को भी केवलज्ञान हुआ। ये गुरु-शिष्या धन्य हैं। “राग के साम्राज्य को तोड़कर परम वैराग्य को प्राप्त करनेवाले ! आपका स्मरण करते समय मस्तक झुक जाता है और मन ही मन प्रार्थना करते हैं कि आपके जैसी सरलता और समर्पण हमें भी मिलें । " गाथा : पउमावई अ गोरी, गंधारी लक्खमणा सुसीमा य जंबूवई सभामा, रुप्पिणी कण्हट्ठमहिसीओ । । ११ । । संस्कृत छाया : पद्मावती च गौरी, गान्धारी लक्ष्मणा सुसीमा च जम्बूवती सत्यभामा, रुक्मिणी कृष्णस्य अष्टमहिष्य ।।११।। शब्दार्थ : और पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जंबूवती, सत्यभामा, रूक्मिणी ये आठ कृष्ण की पटरानियाँ ।।११।। विशेषार्थ : ३३ से ४० (८६ से ९३ ) श्रीकृष्ण की पटरानियाँ
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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