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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
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समय व्यतीत होने पर कलावती ने गर्भ धारण किया, यह जानकर उसके भाई ने उसे सोने के कड़े भेंट दिए। कड़े देखकर कलावती बोल उठी, “जिसने मुझे ऐसा उपहार भेजा, उसे मुझ पर कैसा स्नेह होगा !" ये शब्द शंखराज ने सुन लिए। कलावती को मुझसे भी अधिक प्रेम किसी अन्य पर है, यह सोचकर उन्हें क्रोध आया। क्रोध में विवेक भूलकर उन्होंने जल्लाद को बुलाकर कंगन सहित कलावती के दोनों हाथ काट डालने का हुक्म दिया।
पूर्वभव में प्यारा तोता उड़ न जाए ऐसी ममता में विह्वल बनकर तोते के पंख काँट डालने से बंधे कर्म के उदय से ऐसा हुआ । जल्लाद ने कलावती को जंगल ले जाकर शंखराज के हुक्म का पालन किया । दृढ़ धर्मानुरागिणी कलावती ने कर्मकृत परिस्थितियों का सहज स्वीकार कर लिया। जंगल में उन्होंने पुत्र को जन्म दिया। उनके सम्यक्त्व और शील के प्रभाव से दोनों हाथ वापस आ गए और कंगनों से विभूषित बन गए।
इधर कलावती के कंगनयुक्त काटे गए दोनों हाथों को जब शंखराज ने देखा तो उस कंगन पर कलावती के भाई का नाम पढ़कर उनकी शंका दूर हुई । उन्हें बहुत पछतावा हुआ। बहुत समय बाद दोनों का मिलाप हुआ। सुंदर भवितव्यता के कारण एक ज्ञानी गुरु भगवंत से दोनों ने अपना पूर्व जन्म जाना। जातिस्मरण ज्ञान हुआ। कर्म के बंधनों को तोड़ने का दृढ़ निर्णय लिया और दीक्षा लेकर आत्मकल्याण किया। ये दोनों आत्माएँ वहाँ से देवलोक में गईं और अंत में पृथ्वीचंद्र और गुणसागर होकर मोक्ष में गए।
“धन्य है आपको ! धन्य है आपकी धीरता, गंभीरता
और श्रद्धा को ! आपके चरणों में मस्तक झुकाकर ऐसे सद्गुणों की प्राप्ति के लिए आपसे प्रार्थना करते हैं।"