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सूत्र संवेदना-५
सती है, चंदनबालाजी की माता धारिणी में ऐसा सतीत्व था। वह चेटक (चेड़ा) महाराज की पुत्री और चंपापुरी के दधिवाहन राजा की रानी थी। एक बार शतानीक राजा ने चंपापुरी पर चढ़ाई की । तब श्रीमती धारिणी अपनी छोटी पुत्री वसुमती (चंदनबालाजी) के साथ भाग गई। किसी सिपाही ने उनको पकड़ लिया और उनसे अनुचित माँग की। धारिणी ने उसे कड़े शब्दों में बहुत समझाया, परन्तु मोहांध होकर वह धारिणी से ज़बरदस्ती करने लगा। शील रक्षा के लिए धारिणीजी ने जीभ कुचलकर प्राण त्याग दिए।
“शीलधर्म का पालन करने के लिए प्राण का त्याग करनेवाली है देवी ! हम आपके चरणों में मस्तक झुकाकर शील की महानता की अभ्यर्थना करते हैं ।" ३१ (८४) कलावई - महासती कलावती
स्नेहासक्त होकर जीव कैसी-कैसी विचित्र और क्रूर प्रवृत्तियाँ कर बैठता है, जिसके परिणाम से उसे भयंकर फल भुगतने पड़ते हैं यह महासती कलावती के जीवन वृतांत का चिंतन करने से समझा जा सकता है।
रूप रंग में देवांगनाओं को भी हरानेवाली कलावती धर्म के प्रति अडिग श्रद्धावाली थी। इन्होंने अपने स्वयंवर में भौतिक सुख में अनुकूल रहे ऐसे रूप-रंग या ऐश्वर्य की परीक्षा करने के बजाय, सामनेवाला व्यक्ति योगमार्ग में सहायक बनेगा या नहीं, इसकी कसौटी करने के लिए तत्त्वविषयक चार गहन प्रश्न पूछे। सरस्वती के उपासक शंखराज ने जवाब दिये। 'वीतरागदेव सुदेव हैं, पंचमहाव्रतधारी गुरु हैं, सर्वजीवों के प्रति दया रखना, यह तत्त्व है और इन्द्रियों का निग्रह करना यह सत्त्व है।' शंख-कलावती के संबंधों की शुरुआत ये सभी उत्तर बने।