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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२६१ २७ (८०) जयंती अ - और जयंती श्राविका
एक श्राविका ने प्रभु से तत्त्वविषयक प्रश्न पूछे और उन प्रश्नों के उत्तर गणधर भगवंतों ने आगम में दिए।
यह कैसी अनुपम घटना । ये प्रश्न पूछनेवाली थी एक श्राविका - जिनका नाम श्रीमती जयंती था। वे शतानीक राजा की बहन थीं और मृगावतीजी की ननंद।
तत्त्वज्ञान के पुंज के समान जयंती श्राविका को प्रभु का प्रत्युत्तर सुनकर वैराग्य उत्पन्न हुआ। दीक्षा लेकर सभी कर्म का क्षयकर वे मोक्ष गईं।
"हे महासती ! आपकी जिज्ञासा को अंतर से वंदन करते हैं। 'ज्ञानस्य फलं विरतिः' के सूत्र को साकार करनेवाला आपके जैसा ज्ञान हमें भी मिले।" २८ (८१) देवई - देवकी माता
कृष्ण महाराज, सत्त्वशाली मुनि गजसुकुमार और दूसरे छ : तेजस्वी वीर पुत्रों की माता देवकी, कंस के पितृपक्ष के देवक राजा की पुत्री थी।
एक मुनिराज के वचन से कंस को पता चला कि देवकी के पुत्र द्वारा उसकी मृत्यु होगी । इसी कारण देवकी के प्रथम छ: पुत्रों को मारने के लिए कंस ने प्रयत्न किया, परन्तु देव ने उन्हें बचा लिया। सातवीं संतान कृष्ण महाराज थे, जिन्हें नंद एवं यशोदा ने पाला पोसा। देवकी ने सात पुत्रों को जन्म तो दिया परन्तु पुत्र के लालन-पालन की लालसा अधूरी ही रही। उनकी इस इच्छा को पूरी करने के लिए कृष्ण महाराज ने हरिणैगमेषी देव को प्रसन्न करके उनको गजसुकुमार नाम का आठवाँ पुत्र दिलवाया।