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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय हुआ। ब्राह्मी और सुंदरी दोनों विदुषी थीं। ऋषभदेव ने ब्राह्मी को लिपिज्ञान दिया और सुंदरी को गणित में प्रवीण किया । इसके अलावा उन्होंने ६४ कलाओं का ज्ञान भी दिया। जब ऋषभदेव भगवान को केवलज्ञान हुआ तब ब्राह्मी ने दीक्षा ली; परन्तु भरत महाराजा को सुंदरी के प्रति विशेष राग था इसलिए उसे दीक्षा की अनुमति नहीं दी।
उसके बाद भरत महाराज छ खंड को जीतने निकले और ६० हज़ार वर्ष के बाद वापस लौटे इन ६०,००० वर्षों तक सुंदरी ने चारित्र पाने के लिए आयंबिल किये। उनकी काया सूख गई थी। भरत महाराज यह देखकर खिन्न हुए। जब सुंदरी के वैराग्य का पता चला तब अपने आप पर धिक्कार हुआ। उनकी अनुमति से सुंदरी ने दीक्षा ली।
इन दोनों बहनों ने 'वीरा गज थकी हेठे उतरो' इत्यादि वचन के द्वारा भाई बाहुबली को अभिमान का त्याग करने की सीख दी। सुंदर संयम का पालन कर केवलज्ञान प्राप्त करके, दोनों बहनों ने मोक्ष प्राप्त किया।
“धन्य है ब्राह्मी और सुंदरी के सौभाग्य को ! उनके पिता प्रथम तीर्थंकर ! और सबसे पहले लिपि और गणित का ज्ञान प्रभु ने उनको दिया। प्रभु के पास ही दीक्षा ली, आत्मकल्याण साधकर मोक्ष जानेवाली इन बहनों को कोटि कोटि वंदन ।” २३ (७६) रूप्पिणी - रुक्मिणी यह एक सुविशुद्ध शील को धारण करनेवाली सन्नारी है जिसे हमें भावपूर्वक वंदना करनी है। 4. यह रुक्मिणी कृष्ण की पटरानियों से अलग होनी चाहिए क्योंकि उनका उल्लेख आगे ११वीं
गाथा में आता है।