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________________ २५६ सूत्र संवेदना-५ 'अब अपना मुँह मुझे मत दिखाना ।' अभयकुमार तो यह शब्द सुनने की प्रतिक्षा ही कर रहे थे । तुरंत ही उन्होंने वीर प्रभु के पास जाकर संयम स्वीकार लिया। चेल्लणाजी ने कई सालों तक पति की भक्ति की । जब पुत्र कोणिक ने पिता श्रेणिकराजा को जेल में केद किया तब भी चेल्लणा देवी रोज़ उनकी सेवा करने जाती थीं । दृढ़ पतिव्रता श्रीमती चेल्लणा अंत में वीरप्रभु के पास संयम स्वीकार कर सुंदर आराधना करके सिद्ध हुईं। “हे देवी ! आपकी देव - गुरुभक्ति को प्रणाम करके आपके जैसी भक्ति के गुण की अभिलाषा करते हैं ।” गाथा : भी सुंदरी रुप्पिणी, रेवइ कुंती सिवा जयंती अ देवइ दोवड़ धारणी, कलावई पुप्फचूला य ।। १० ।। संस्कृत छाया : ब्राह्मी सुन्दरी रुक्मिणी रेवती कुन्ती शिवा जयन्ती च देवकी द्रौपदी धारणी, कलावती पुष्पचूला च ।।१०।। शब्दार्थ : ब्राह्मी, सुंदरी, रुक्मिणी, रेवती, कुंती, शिवा, जयन्ती, देवकी, द्रौपदी, धारणी, कलावती और पुष्पचूला ।। १० ।। २१-२२ (७४-७५) बंभी - सुंदरी - श्रीमती ब्राह्मी और श्रीमती सुंदरीः ऋषभदेव परमात्मा को सुमंगला रानी से भरत और ब्राह्मी नाम का एक युगल और सुनंदा से बाहुबली और सुंदरी नाम का दूसरा युगल
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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