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सूत्र संवेदना-५
'अब अपना मुँह मुझे मत दिखाना ।' अभयकुमार तो यह शब्द सुनने की प्रतिक्षा ही कर रहे थे । तुरंत ही उन्होंने वीर प्रभु के पास जाकर संयम स्वीकार लिया।
चेल्लणाजी ने कई सालों तक पति की भक्ति की । जब पुत्र कोणिक ने पिता श्रेणिकराजा को जेल में केद किया तब भी चेल्लणा देवी रोज़ उनकी सेवा करने जाती थीं । दृढ़ पतिव्रता श्रीमती चेल्लणा अंत में वीरप्रभु के पास संयम स्वीकार कर सुंदर आराधना करके सिद्ध हुईं।
“हे देवी ! आपकी देव - गुरुभक्ति को प्रणाम करके आपके जैसी भक्ति के गुण की अभिलाषा करते हैं ।”
गाथा :
भी सुंदरी रुप्पिणी, रेवइ कुंती सिवा जयंती अ देवइ दोवड़ धारणी, कलावई पुप्फचूला य ।। १० ।।
संस्कृत छाया :
ब्राह्मी सुन्दरी रुक्मिणी रेवती कुन्ती शिवा जयन्ती च देवकी द्रौपदी धारणी, कलावती पुष्पचूला च ।।१०।।
शब्दार्थ :
ब्राह्मी, सुंदरी, रुक्मिणी, रेवती, कुंती, शिवा, जयन्ती, देवकी, द्रौपदी, धारणी, कलावती और पुष्पचूला ।। १० ।।
२१-२२ (७४-७५) बंभी - सुंदरी - श्रीमती ब्राह्मी और श्रीमती सुंदरीः
ऋषभदेव परमात्मा को सुमंगला रानी से भरत और ब्राह्मी नाम का एक युगल और सुनंदा से बाहुबली और सुंदरी नाम का दूसरा युगल