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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय श्रेणिक महाराज का चित्र देखकर सुज्येष्ठा उनके ऊपर मोहित हो गई परन्तु चेडा राजा को श्रेणिक के साथ अपनी पुत्री की शादी करवाना मंजूर न था । इसलिए श्रेणिक महाराज सुरंग के रास्ते द्वारा सुज्येष्ठा को लेने आए; परन्तु कर्मसंयोग से वे चेल्लणा को लेकर वापस लौट गये ।
चेल्लणा सती को खराब दोहदपूर्वक कोणिक नाम का पुत्र हुआ। चेल्लणाजी अपनी इच्छानुसार सदा उत्तम धर्माराधना कर सकें उसके लिए श्रेणिक महाराज ने उनके लिए एक स्थंभी महल बनाया था जहाँ वे देव-गुरुभक्ति में लीन रहती थीं। ....'इच्छकार सुह राई ?, ...स्वामी शाता है ?' ऐसा बोलकर साधु की शाता तो हर कोई पूछता है परन्तु चेल्लणा सती के हृदय में उत्कृष्ट भक्ति राग था। उन्हें साधु के संयम की चिंता थी। एक मध्यरात्रि में ठंडी हवा चल रही थी । साधु भगवंत की चिंता से चेल्लणाजी नींद में ही बोल रही थीं कि, 'उनका क्या होता होगा ?' श्रेणिक महाराज को यह सुनते ही उन पर शक हुआ कि चेल्लणा रानी ज़रूर किसी परपुरुष की चिंता कर रही हैं। आवेश में आए श्रेणिक महाराज ने सुबह ही अभयकुमार को अंतःपुर जलाने का आदेश दे दिया । बुद्धिनिधान अभयकुमार ने चेल्लणा सती आदि को दूसरे स्थान पर भेजकर अंतःपुर जला दिया। श्रेणिक महाराज तो आदेश देकर वीर प्रभु के पास गए। वहाँ उन्होंने प्रभुवचन से जाना कि चेल्लणा तो सती है। यह बात सुनते ही श्रेणिक महाराज को आनंद के साथ घबराहट भी हुई कि कहीं अभयकुमार ने अंतःपुर जला तो नहीं दिया होगा ना । इसलिए वे तुरंत वापस आए। गाँव में प्रवेश करते ही उन्होंने अभयकुमार को देखा और पूछा कि क्या तुमने अंतःपुर जला दिया ?' अभयकुमार ने जवाब दिया 'हाँ'। सुनते ही श्रेणिक महाराज ने कहा -