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सूत्र संवेदना-५
भूल का बचाव करने की बुरी आदतों को निकालकर
अपनी भूल को सुधारने का सामर्थ्य प्राप्त करें ।" १९ (७२) पभावई - श्रीमती प्रभावती प्रभावती रानी भी चेड़ा राजा की पुत्री और सिंध देश के वीतभय नगर के उदयन राजा की पटरानी थीं। पूर्व में किए गए पाप के प्रक्षालन के लिए कुमारनंदी सोनी ने जीवित स्वामी की अद्भुत प्रतिमा का निर्माण किया था। यह प्रतिमा कालक्रमानुसार प्रभावती रानी के पास आई । उन्होंने उसे मंदिर में प्रतिष्ठित कर उसकी नित्य अपूर्व भक्ति की । एक बार उन्होंने दासी से पूजा के वस्त्र मंगवाएँ; उनको वे वस्त्र कुछ अलग दिखने लगे, इससे उनको लगा कि अब उनकी मृत्यु निकट है। इसलिए उन्होंने वैराग्यपूर्वक वीर प्रभु से दीक्षा लीं । सुंदर संयम का पालन करके समाधि मृत्यु प्राप्तकर देवलोक में गईं। वहाँ से वे एकावतारी होकर मोक्ष जाएँगी।
"हे प्रभावती देवी ! आपकी प्रभु भक्ति को कोटि-कोटि वंदना, जिसके प्रभाव से आप सभी प्रकार की आसक्ति का त्याग कर मुक्ति को प्राप्त कर सकेंगी । हममें भी आप जैसी भक्ति प्रगट हो, वैसी प्रभु से प्रार्थना करते हैं।" २० (७३) चिल्लणादेवी - चेल्लणा सती सुज्येष्ठा और चेल्लणा दोनों चेडा राजा की पुत्रियाँ थीं और दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती थीं । ६४ कलाओं में निपुण और रूप में रंभा को मात दें ऐसी ये दो बहनें धर्मशास्त्र में भी निपुण थीं और वीर प्रभु के वचन का अनुसरण करनेवाली परम श्राविकाएँ थीं ।