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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय २५३ विनंती करते हैं कि हममें भी आपके जैसा वैराग्य
और कर्मक्षय करने का उल्लास प्रगट हो।" १८ (७१) मिगावइ - मृगावती ।
चेड़ा राजा की पुत्री, शतानीक राजा की पत्नी तथा उदयन राजा की माता होने के बावजूद भी सांसारिक संबंध से अपनी भान्जी चंदनबालाजी को अपने गुरु के पद पर स्थापित कर उनका उलहना सुनना कोई आसान बात नहीं है। इसके लिए अभिमान को तोड़ना पड़ता है। सरलता और नम्रता जैसे गुण विकसित करने पड़ते हैं। आर्या मृगावतीजी ने इन्हीं गुणों को बखूबी आत्मसात् किया था इसीलिए वे सच्ची शिष्या बन सकीं।
एक बार वे सभी साध्वियों के साथ वीर प्रभु की देशना सुनने गई थीं। वहाँ सूर्य-चंद्र मूल विमान में आए थे, विमान के प्रकाश के कारण रात होने पर भी रात का पता न चला। दूसरी साध्वियाँ तो समय का ध्यान रखकर अपने-अपने उपाश्रय आ गई; परन्तु मृगावतीजी देशना सुनने में इतनी लीन हो गई थीं कि उनको समय का ध्यान ही नहीं रहा । सूर्य-चंद्र के जाने के बाद वे रात को उपाश्रय लौटीं। __गुरुणी ने मृगावतीजी को उलाहना दिया, 'तुम्हारी जैसी कुलीन ऐसा प्रमाद करे !' उस समय वे अनेक प्रकार से अपना बचाव कर सकती थीं; परन्तु सच्चे शिष्य को शोभा दे, उस तरीके से उन्होंने अपनी भूल का स्वीकार किया। गुरु से क्षमा माँगी और एक दोष को निर्मूल करते-करते उनके सभी दोषों का नाश हो गया। उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
“स्वदोष की गवेषक हे मृगावतीजी! आपके चरणों में मस्तक झुकाकर प्रार्थना करते हैं कि हम भी अपनी