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________________ सूत्र संवेदना - ५ धर्मात्मा को भी उन जीवों के अपराध पर द्वेष आदि दुर्भाव हो सकते हैं । धर्म समझने के कारण उसे अपना दुर्भाव चुभता है और वह सभी जीवों से कहता है कि, 'मैं भी आपको माफ करता हूँ । आपके अपराध को भूलकर पुनः आप सभी को अपना मित्र मानता हूँ ।' १४ यह गाथा बोलते समय साधक जीवों को मन में उपस्थित करके सोचता है - “आज तक इस धर्म को मैं नहीं समझा । समझने के बावजूद हृदय से उसका स्वीकार नहीं किया । इसीलिए खुद के और स्वजन के सुख के लिए मैंने आपके अनेक अपराध किए हैं, आपको कई प्रकार से दुःखी किया है एवं अनेक प्रकार से आपको पीड़ा दी है। अब मैं आपको अपने जैसा मानता हूँ। मैंने भावपूर्वक अपने अंतःकरण में आपके प्रति मैत्रीभाव प्रकट किया है। मित्रतुल्य आपके प्रति हुए अपराधों के लिए नतमस्तक होकर मैं क्षमा माँगता हूँ और आपके द्वारा मेरे प्रति हुए सभी अपराधों के कारण मेरे हृदय में जो वैरभाव है उसे दूर करके आपको माफ करता हूँ ।” जिज्ञासा : पहले आचार्य और बाद में उपाध्याय आदि की क्षमापना ऐसा क्रम किसलिए ? तृप्ति : वर्तमान में गुण की अपेक्षा से आचार्य भगवंत सर्व श्रेष्ठ हैं। सब से पहले विशेष गुणवान आत्मा से क्षमा मांगनी चाहिए, इसलिए
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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