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भरहेसर - बाहुबली सज्झाय
“हे पद्मावती रानी ! आपत्ति के समय में दीन या हताश हुए बिना आपने धर्म का आश्रय लिया, लिए हुए संयम का अखंड पालन करके पुत्र स्नेह का भी त्याग किया। धन्य है आपकी निस्पृहता और निर्ममता। हम आपको वंदन करके आपके जैसे बनने की प्रार्थना करते हैं।"
१४. (६७) अंजणा - श्रीमती अंजनासुंदरी
वीर हनुमान की माता अंजनासुंदरी का नाम सुनते ही कर्म की विचित्रता और विपरीत परिस्थितियों में उनकी स्थिरता, धीरता, गंभीरता वगैरह गुणों की सहज याद आती है।
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महासती अंजना महेन्द्रराजा की पुत्री थीं तथा प्रह्लादराजा के पुत्र पवनंजय उनके पति थे। शादी के दिन से ही गलतफ़हमी से हुए द्वेष के कारण पवनंजय ने अंजना को पत्नी के रूप में स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था । अनेक बार प्रयत्न करने के बाद भी पवनंजय के व्यवहार में कोई फर्क नहीं पड़ा । २२ साल तक यही क्रम चलता रहा । एक बार पवनंजय युद्ध में जा रहे थे। तब उनको शुभ शगुन देने अंजना दहीं की कटोरी लेकर खड़ी थी। अंजना को देखते ही पवनंजय को गुस्सा आया, सब लोगों के बीच कटोरी को लात मारकर अंजना को धक्का देते हुए वे आगे बढ़ गए। अंजना की सखी ने कहा कि, "तुम्हारे पति का यह कैसा न्याय है कि गलती किए बिना ऐसा व्यवहार कर रहे हैं ?"
अपमान, तिरस्कार, धिक्कार पाने के बावजूद अंजना सतीने कहा, "इसमें मेरे पति का कोई दोष नहीं है- दोष मेरे कर्मों का है । " कर्मों के प्रति उनकी श्रद्धा कैसी होगी कि, सभी लोगों के बीच हुए