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________________ २४८ सूत्र संवेदना-५ “धन्य है ऐसी सती को जिसने मरणांत उपसर्ग देनेवाले को भी माफ कर दिया; उसे बहन मानकर, उसका अपराध कभी याद नहीं किया, न ही करवाया बल्कि उसके ऊपर प्रेम की वर्षा की। प्रातः काल उनका स्मरण करके हमें भी ईर्ष्या जैसे दुर्गुण से मुक्ति मिले और उदारता प्राप्त हो, उसके लिए यत्न करें।" १३. (६६) पउमावइ - रानी पद्मावती चेड़ा राजा को सात पुत्रियाँ थीं। वे सातों सतियाँ थी और भरहेसर की इस सज्झाय में उन सातों के नाम गूंथे हुए हैं। अब उन सतियों को नाम-स्मरणपूर्वक प्रणाम करना है। श्रीमती पद्मावतीजी भी इन सातों में से एक थीं। उनकी शादी चंपापुरी के दधिवाहन राजा के साथ हुई थी। गर्भावस्था में उनकी इच्छा हुई कि, 'मैं राजा की पोषाक पहनकर हाथी के ऊपर बैठकर क्रीड़ा करने जाऊँ और राजा से छत्र धराऊँ ।' इस इच्छा को पूरा करने वे वन में गये। वहाँ हाथी पागल होकर भागने लगा। राजा एक बरगद की डाली पर लटक गए लेकिन पद्मावती वैसा न कर सकीं। अंत में जब हाथी पानी पीने के लिए खड़ा हुआ तब वह उतरकर निर्जन वन में अकेले घूमने लगी। वहाँ से एक तापस आश्रम में गईं। आगे जाते हुए उनका परिचय साध्वियों से हुआ। स्वयं सगर्भा है यह बात छिपाकर उन्होंने दीक्षा ली। कालक्रमानुसार उनको पुत्र हुआ, जिसे उन्होंने श्मशान में छोड़ दिया। एक बार पद्मावती द्वारा छोड़े गए पुत्र करकंडु और पिता दधिवाहन राजा के बीच युद्ध हुआ। तब उन्होंने युद्ध रुकवाकर सभी को कर्म की परिस्थिति समझाई और संसार का त्याग करवाया।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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