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________________ २५० सूत्र संवेदना-५ अपमान को वे इतनी स्वस्थता से सहन कर सकीं, न किसी की गलती निकाली, न तो आर्तध्यान किया। युद्ध के समय पवनंजय ने जब एक चक्रवाकी को उसके पति के विरह में तड़पते हुए देखा, तब उनको अंजना की याद आई। आकाशमार्ग से वे तुरंत अंजना के पास आए। पूरी रात अंजना के साथ बिताई। प्रातः काल अंजना ने कहा, 'प्राणनाथ! आपके आने की खबर किसी को नहीं है। यदि मुझे गर्भ रहेगा तो मैं क्या जवाब दूँगी ?' तब पवनंजय ने सबूत के तौर पर अंजना को अपनी अंगूठी दी और पुनः युद्ध में चले गए। अंजना को गर्भ रह गया । यह बात अंजना के सास-ससुर तक पहुँची। वे जानते थे कि उनका पुत्र पवनंजय तो अंजना के सामने देखता भी नहीं था। कर्म की विचित्रता के कारण उन्होंने गर्भवती अंजना को व्यभिचारी मानकर, कलंकिनी नाम देकर पिता के घर भेज दिया। वहाँ उनके माता-पिता और १०० भाइयों में से किसी ने भी अंजना की बात नहीं मानी, सब ने उनको तिरस्कार करके निकाल दिया, अतः वे अकेले ही वन में गईं । वन में उन्होंने तेजस्वी पुत्र 'हनुमान' को जन्म दिया । युद्ध करके वापस लौटकर पवनंजय ने प्रिया को नहीं देखा । परिस्थिति का ज्ञान होते ही शीलधर्म का पालन करनेवाली अपनी पत्नी को ढूँढ़ने निकलें। कई कठिनाइयों के बाद दोनों का मिलन हुआ। "धन्य है अंजना सती ! बिना गुनाह के २२-२२ साल तक गुनहगार माननेवाले पति के प्रति उन्होंने कभी भी अभाव, दुर्भाव या अप्रीति नहीं दिखाई । खुद को
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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