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________________ २४५ भरहेसर-बाहुबली सज्झाय “हे देवी! संकट के समय में भी आपने जो धीरता और गंभीरता और कर्म के प्रति श्रद्धा स्थिर रखी है, वह अति अनुमोदनीय है। आपके इन गुणों के प्रति आदर करके हमें भी ऐसी धीरता प्राप्त हो, एसी प्रार्थना करते हैं।" गाथा : राइमई रिसिदत्ता, पउमावइ अंजणा सिरीदेवी । जिट्ट सुजिट्ठ मिगावइ, पभावई चिल्लणादेवी ।।९।। संस्कृत छाया: राजिमती ऋषिदत्ता, पद्मावती अञ्जना श्रीदेवी ज्येष्ठा सुज्येष्ठा मृगावती, प्रभावती चेल्लणादेवी ।।९।। शब्दार्थ : राजिमती, ऋषिदत्ता, पद्मावती, अंजनासुंदरी, श्रीदेवी, ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा, मृगावती, प्रभावती और चेलणा रानी ।।९।। ११. (६४) राइमई - राजिमती सांसारिक सुखो के अनेक अरमान होने के बावजूद, जब पति वैरागी बन गए, तब शील टिकाकर अपनी इच्छाओं का त्याग करके पति के मार्ग का अनुसरण करना, यह राजुल का (राजिमती का) अप्रतिम गुण था। उग्रसेन राजा की पुत्री राजिमती जी नेमनाथ प्रभु के पास संयम स्वीकार करके उनकी प्रथम साध्वी बनी थीं। एक बार श्री नेमनाथ प्रभु के छोटे भाई रथनेमि, उनका रूप देखकर उनके प्रति मोहित होकर संयम से चलायमान हो गए; परन्तु इस महासती ने सुंदर शिक्षा देकर उनको पुनः संयम में स्थिर किया। कालक्रमानुसार सभी कर्मों का क्षय करके उन्होंने मुक्ति प्राप्त की।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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