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________________ २४६ सूत्र संवेदना-५ "प्रियतम के वैराग्य पथ पर चलनेवाली हे महासतीजी आप धन्य हैं ! दुनिया तो राग के संबंध बाँधने की महेनत करती है जब कि आपने तो नौ-नौ भव के राग का संबंध तोड़ने का प्रयत्न किया; रागी बनकर आए हुए रथनेमि को आपने संयम में स्थिर किया। यह गुण हमें भी प्राप्त हों।” १२. (६५) रिसिदत्ता - महासती ऋषिदत्ता परम सुख में भी दुःख देनेवाला एक दुर्गुण है - ईर्ष्या। ईर्ष्या को मारने की क्षमता, उदारता नाम के गुण में है। ऋषिदत्ता के चरित्र से जीवन में कैसी उदारता होनी चाहिए, यह सीखने को मिलता है। ऋषिदत्ता एक ऋषि की कन्या थी। उनके पिता को वैराग्य हुआ तब उनकी माता रानी प्रीतिमती ने गर्भावस्था में उनके साथ संन्यास स्वीकार किया। उसके बाद आश्रम में ऋषिदत्ता का जन्म हुआ। जन्म होते ही उनकी माता की मृत्यु हो गई, जिससे उनके पिता ने उनका पालन किया। वे रूप, लावण्य और गुणों की भंडार थीं। जंगल में उनके शील की रक्षा करने के लिए उनके पिता ने उन्हें एक अंजन दिया था, जिसके उपयोग से वे पुरुष का रूप धारण कर सकती थीं। एक समय हेमरथ राजा का पुत्र कनकरथ रुक्मिणी नाम की राजकन्या से शादी करने जा रहा था। रास्ते में उसने ऋषिदत्ता के आश्रम के पास पड़ाव डाला। वहाँ उसका मिलन ऋषिदत्ता और उनके पिता के साथ हुआ। पिता की इच्छा से वहीं उसने ऋषिदत्ता के साथ शादी की । संतोषी कनकरथ ऋषिदत्ता से शादी करने के बाद वहाँ से ही लौट चला। यह समाचार रुक्मिणी को मिला। उससे यह बिल्कुल सहन न हुआ। उसने ऋषिदत्ता को कलंकित करने के लिए जोगिनी के साथ
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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