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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
२४३ मना करने पर दासी ने कहा, 'मेरी सेठानी दर्शन करने योग्य हैं, एक बार उनके दर्शन करने पधारिए।' व्यापारी आए। दासी के ऐसे वचन से ही पता चलता है कि भद्रामाता अपनी दासियों का भी कैसा ध्यान रखती होंगी। उदार दिल इस सेठानी ने सभी १६ रत्नकंबल खरीद लिये
और उसके दो-दो टुकड़े करके अपनी बत्तीस बहुओं को दे दिए, व्यापारियों के आश्चर्य की सीमा न रही । __ भद्रा सेठानी ने एक दिन भी पुत्र को कोई कष्ट नहीं होने दिया। सारा व्यापार वे स्वयं संभालती थीं। जब शालिभद्रजी दीक्षा के लिए तैयार हुए तब वे स्वयं भेंट लेकर राजा के पास गईं और राजा के सहकार से भव्यतापूर्वक शालिभद्र की दीक्षा करवाई। अनुक्रम से भद्रामाता ने भी वैराग्य प्राप्त कर वीर प्रभु के पास दीक्षा ली और समाधिपूर्वक देवलोक में गईं। वहाँ से मनुष्य भव प्राप्त कर दीक्षा लेकर वे मोक्ष में जाएँगी।
“भद्रामाता को वंदन करके उनके जैसी व्यवहारिक कुशलता, उदारता और औचित्य की प्रार्थना करें ।" १०. (६३) सुभद्दा य - और श्रीमती सुभद्रा सती - सुभद्रा सती के पिता जिनदास और माता तत्त्वमालिनी थे। सुभद्रा ने जैन धर्म के तत्त्वज्ञान का गहरा अध्ययन किया था, उनके पिता की इच्छा थी कि उनके योग्य धार्मिक व्यक्ति के साथ ही शादी करवाएँ। सुभद्रा के रूप से मोहित हुए बुद्धदास ने कपटपूर्वक उन्हें प्राप्त करने के लिए स्वयं जैनधर्म के प्रति अटल आस्थावाले होने का आभास करवाया। कर्म की विचित्रता के कारण सुभद्राजी के पिता को बुद्धदास का स्वांग सत्य लगा और सुभद्रा की शादी उससे कर दी।