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सूत्र संवेदना-५
कितने वर्षों तक पति का वियोग सहना पड़ा, परन्तु वे धर्मपरायण और शील में अडिग रहीं। बुद्धिनिधान पुत्र अभयकुमार ने कुशलता और स्वाभिमानपूर्वक माता नंदा और पिता का पुनः मिलन करवाया।
अभयकुमार में वैराग्य के संस्कार का सिंचन करनेवाली इस माता ने भी अभयकुमार की तरह वीरप्रभु के पास दीक्षा ली थी। साधना करके वे अनुत्तर विमान में देव हुईं और वहाँ से च्युत होकर मोक्ष में जाएँगी।
"हे देवी! आपको वंदन करके प्रार्थना करते हैं कि संकट के समय आप जैसी धर्मपरायणता और
शीलभंग से बचने की शक्ति हमें भी प्राप्त हो।" ९. (६२) भद्दा - श्रीमती भद्रामाता
शालिभद्र की माता और गोभद्र सेठ की सेठानी भद्रामाता एक जाज्वल्यमान व्यक्तित्व की धारक थीं। उन्होंने श्री शालिभद्रजी का कैसे संस्कारों से सिंचन किया होगा कि अपरंपार वैभव को शालिभद्रजी एक क्षण में ही छोड़ सकें। उनकी पुत्री सुभद्रा को भी उन्होंने किस प्रकार पाला होगा कि पिता के घर में इतना वैभव होने के बावजूद, संसार में आई हुई आपत्ति के समय सुभद्रा को पिता के घर आने का मन नहीं हुआ । सुसंस्कारी नारी की तरह उन्होंने अनेक तकलीफों के बीच मिट्टी के बर्तन उठाकर सास-ससुर की सेवा करने में ही आनंद का अनुभव करके भद्रामाता के कुल को रोशन किया।
नेपाल के व्यापारियों मगध में उनके रत्नकंबल खरीदनेवाला कोई नहीं मिलने पर निराश होकर वापस लौट रहे थे। यह देखकर भद्रामाता को लगा कि इसमें तो मेरे राजा की लघुता हो रही है। इसलिए उन्होंने दासी के द्वारा व्यापारियों को बुलवाया; व्यापारी के