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सूत्र संवेदना-५ नहीं होने दिया। प्राप्त बुद्धि के प्रभाव से अनेक प्रश्नों का योग्य उत्तर दिया और शील के प्रभाव से सबके कल्याण में निमित्त बनीं। आपकी वंदना करके, कर्म के प्रति अटल श्रद्धा, निर्मल बुद्धि और आत्मशुद्धि की प्रार्थना करते है।" ७. (६०) सीया - महासती सीतादेवी जनक राजा की पुत्री और श्री रामचंद्रजी की पत्नी सीताजी की कथा सर्वविदित है। प्रभात में उनका स्मरण करने से कर्म के प्रति उनकी श्रद्धा, कर्तव्यपरायणता और शील की दृढ़ता जैसे उच्च गुण सहज स्मरण में आते हैं।
महासती सीतादेवी जन्मीं तब से ही, कर्मों ने उनकी कसौटी करने में कोई कोर कसर नहीं रखी; जन्म से पहले पिता का अज्ञातवास, जन्म लेते ही भाई का अपहरण, शादी के समय पिता का अपहरण, शादी के बाद पति को वनवास, पति के साथ खुद भी वनवास में गईं। वहाँ रावण के द्वारा खुद उनका ही अपहरण हुआ। युद्ध करके रावण का संहार करने के बाद जब पति के साथ अयोध्या वापस आईं, तब उनके ऊपर कलंक लगा। परिणामस्वरूप स्वयं पति रामचन्द्रजी ने भी गर्भावस्था में उन्हें कपट से जंगल में छोड़ दिया। इन आपत्तियो में भी सीताजी ने कभी किसी को दोष नहीं दिया और अपने चित्त की स्वस्थता भी नहीं खोई। अरे! ऐसे प्रसंग में भी उन्होंने अपने पति की हितचिंता करते हुए संदेशा भेजा कि, 'लोक लाज से मुझे छोड़ा तो उसमें आपको बहुत नुकसान नहीं है। परन्तु लोक लाज से कभी भी धर्म को मत छोड़ना।' अपने पुण्य-पाप के प्रति कैसी श्रद्धा! कर्तव्यपालन और पतिव्रता धर्म भी कैसा !