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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय इस दृष्टांत से समझा जा सकता है। सहदेव और ऋषिदत्ता भाई-बहन थे। उसमें ऋषिदत्ता की शादी एक बौद्धधर्मी के साथ हुई। कालक्रमानुसार सहदेव को नर्मदा नाम की पुत्री और ऋषिदत्ता को महेश्वरदत्त नाम का पुत्र हुआ। उस काल के सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार उन दोनों की शादी हुई। नर्मदासुंदरी जैनधर्म की दृढ़ अनुरागी थी परन्तु उनका ससुराल जैनधर्मी न था फिर भी उसकी उदारता और उचित प्रवृत्तियों के प्रभाव से ससुराल में भी सभी जैनधर्मी बन गए।
एक दिन अनजाने में नर्मदासुंदरी से एक साधु के ऊपर पान की पिचकारी पड़ी। साधु ने कहा, 'यह आशातना पति का वियोग बताती है।' उसके बाद एक बार समुद्र की यात्रा करते हुए नर्मदासुंदरी और उसके पति जहाज़ में बैठे-बैठे सुंदर संगीत सुन रहे थे। कला में चतुर नर्मदासुंदरी ने गायक की आवाज़ के आधार पर उसके रूप आदि का हूबहू वर्णन किया। यह सुनते ही पति को उनके ऊपर शंका हुई और उनको एक बंदरगाह पर छोड़कर वे चले गए।
पति का वियोग होने के बाद नर्मदासुंदरी के शील पर अनेक आफ़तें आईं। उनको वेश्या के घर जाना पड़ा। गटर में गिरकर पागल बनना पड़ा। अनेक आपत्तियों में भी उन्होंने सहनशीलता और बुद्धि के प्रभाव से, धर्म को सुरक्षित रखा। अंत में उन्होंने चारित्र लेकर प्रवर्तिनी पद को सुशोभित किया। साध्वी के रूप में विहार करते हुए जब वह पति के गाँव पहुंची, तब उन्होंने अपने पति और सास को धर्म का ज्ञान देकर दीक्षा दिलवाई।
“हे महासतीजी ! धन्य है आपको ! कर्म के विकट संयोगों में भी आपने आपके मन को चल-विचलित