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सूत्र संवेदना-५
३. ५६ मणोरमा - श्रीमती मनोरमा महासती मनोरमा सुदर्शन शेठ की पत्नी थी। उनके पति के ऊपर जब कलंक लगाया गया और उन्हें फाँसी की सज़ा हुई, तब वे काउस्सग्ग ध्यान में लीन हुईं, जिससे शासनदेव जागृत हुए । उनके शील के प्रभाव से शूली का सिंहासन बन गया और पति के ऊपर आई आपत्ति टल गई ।
“धर्म के ऊपर अडिग श्रद्धा धारण करनेवाली इस महासती को धन्य है! उनके चरणों में शीश झुकाकर हम भी ऐसी श्रद्धा की प्रार्थना करते हैं।" ४. ५७ मयणरेहा - श्रीमती मदनरेखा सुन्दरता की खान, गर्भवती मदनरेखाजी की गोद में पति युगबाहु का सिर है जिनके पेट में खंजर भोंका गया है, खून की धारा बह रही है। कब पति के प्राण पखेरू उड़ जाएँगे, वह पता नहीं है; खूनी जेठ पता नहीं कब आकर लाज लूट लें... फिर भी महासती स्वस्थ चित्त से, घबराहट या दीनता के बिना, पति को निर्यामणा करवा रही थी । उनको अपनी चिंता नहीं थी; कहीं मेरे पति कषायग्रस्त होकर अपना भव न बिगाड़ लें, उसकी गहरी चिंता थी। वे पति से कहती हैं कि 'आप लेश भी अपने भाई के प्रति मन में द्वेष न लाएँ। जो हुआ है वह
आपके कर्मों के कारण ही हुआ है। उसमें किसी का दोष नहीं है।' मदनरेखाजी ने पति को चतुःशरणगमन, सुकृत की अनुमोदना और दुष्कृत की गर्दा आदि रूप अन्तिम समय की इतनी सुंदर आराधना करवाई कि उनके पति समाधिमय मृत्यु को प्राप्त करके देव हुए।
पति को अद्भुत समाधि देने के बाद जेठ से बचने के लिए गर्भवती मदनरेखाजी वहाँ से भाग गईं। जंगल में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया