________________
२३४
सूत्र संवेदना-५ सत्त्व, अदीनता, श्रद्धा, भक्ति आदि गुणों से सुशोभित सुलसा सती अच्छे धर्मकृत्य करके स्वर्ग गई । वहाँ से इसी भरतक्षेत्र में अनागत चौबीसी में 'निर्मम' नाम के पंद्रहवें तीर्थंकर होकर मोक्ष पद को प्राप्त करेंगी।
'वंदना हो आपकी निर्मल श्रद्धा को, आपको नमस्कार करके हम भी निर्मल सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।' २. (५५) चंदनबाला - महासती चंदनबाला
वीरप्रभु कौशाम्बी नगरी में अत्यंत कठोर अभिग्रह धारण करके पधारे थे : 'पैरों में लोहे की बेड़ी हो', एक पैर दहलीज के अंदर हो
और एक पैर दहलीज के बाहर हो', अट्ठम की आराधना हो', मस्तक मुंडित हो', आँख में आँसू हो', राजपुत्री दासीपन को प्राप्त हुई हो, भिक्षा का समय बीत गया हो, तब वह सूपड़े में रहे हुए उड़द के बाकुले अर्पित करे तो मैं पारणा करूँगा, अन्यथा नहीं।' ऐसा अभिग्रह कैसे पूरा हो ? धन्यातिधन्या चंदनबाला द्वारा यह अभिग्रह पूरा होने से प्रभु का पारणा हुआ। ___ उनका मूल नाम वसुमती था। वे राजा दधिवाहन और धारिणी रानी
की पुत्री थीं। चंपापुरी के ऊपर जब राजा शतानीक ने हमला किया, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई और माता ने शीलरक्षा के लिए प्राण त्याग दिए। एक सुभट वसुमती को लेकर भाग गया और बाज़ार में धनवाह सेठ को बेच दिया। वह सेठ उन्हें पुत्री की तरह रखते थे परन्तु सेठानी को उनसे ईर्ष्या होती थी। ऐसा डर था कि सेठ भविष्य में इससे शादी कर लेंगे। एक दिन जब सेठ बाहर गए हुए थे तब सेठानी ने अवसर देखकर चंदनबालाजी का मस्तक मुंडवा कर, पैरों