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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय शब्दार्थ :
सुलसा, चन्दनबाला, मनोरमा, मदनरेखा, दमयन्ती, नर्मदासुंदरी, सीता, नंदा (सुनंदा), भद्रा और सुभद्रा ।।८।। विशेषार्थ :
१. (५४) सुलसा - श्रीमती सुलसा 'मेरा धर्मलाभ कहना' - अंबड परिव्राजक के सम्यग्दर्शन की निर्मलता के लिए खुद वीर प्रभु ने यह संदेश महासती सुलसा को भेजा। वैसे सुलसा के लिए इतनी ही पहचान पर्याप्त है; पर लोग उन्हें नागसारथी की पत्नी के रूप में भी जानते थे।
अंबड परिव्राजक ने प्रभु का संदेश देने से पहले सुलसा के सम्यग्दर्शन की परीक्षा करने के लिए इन्द्रजाल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा तीर्थंकर के समवसरण की ऋद्धि की रचना की। पूरा गाँव देखने उमड़ आया, परन्तु सुलसा नहीं आई। दूसरी तरफ अंबड द्वारा प्रभु का संदेश सुनकर, तब भक्ति भाव से सुलसा के ३१/, करोड़ रोमराजि विकसित हो गए।
मनुष्य ही नहीं देवता भी सुलसा की परीक्षा करने साधु बनकर उनके घर भिक्षा लेने पहुंचे, तब एक लाख सोने के मोहर की कीमतवाली लक्षपाक तेल की चार बोतलें फूटने पर भी सुलसा ने लेशमात्र खेद न किया। देव भी सुलसा की ऐसी भक्ति देखकर प्रसन्न हुए।
श्रीमती सुलसा को हरिणैगमेषी देव के आशीर्वाद से ३२ पुत्र हुए, परन्तु वे श्रेणिक महाराजा की रक्षा करते हुए एक साथ मृत्यु को प्राप्त हुए। उस समय इस परम समकिती श्राविका ने भवस्थिति का विचार कर स्वयं तो शोक का निवारण किया ही, साथ में मोहाधीन पति को भी शोकमुक्त बनने की प्रेरणा दी।