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________________ सूत्र संवेदना - ५ पड़ा। विक्रम राजा के पास सत्त्व होने के कारण गए हुए सभी देव - देवियों को वापस लौटकर आना पड़ा। २३२ कथा काल्पनिक है; परन्तु यह वास्तविकता है कि सभी गुण सत्त्व के आधार पर ही टिके रहते हैं, इसीलिए यहाँ अन्य गुणों को महत्त्व न देकर सत्त्व को महत्त्व दिया गया है। इन सत्त्वशाली महापुरुषों के प्रति हृदय में यदि सच्चा बहुमानभाव प्रगट हो जाए, तो पुण्यानुबंधी पुण्य के बंध द्वारा आत्मविकास सरल बन जाएगा। अतः बहुमान को उल्लसित करती, इस गाथा को बोलते हुए सत्त्वादि गुणसंपन्न इन महापुरुषों को स्मृतिपटल पर लाकर उनके चरणों में वंदन कर प्रार्थना करते हैं कि, " हे सत्त्वशाली सज्जनों! अनेक संकटों के बीच, सिद्धिगति प्राप्त करने के लिए आपने जिस प्रकार आंतरिक - बाह्य संघर्ष किया वैसा संघर्ष करने का सत्त्व हमें भी प्राप्त हो, जिसके बल पर मोक्षमार्ग में स्थिर होकर हम भी आप की तरह शाश्वत सुख प्राप्त कर सकें ।” गाथा : सुलसा चंदनबाला, मणोरमा, मयणरेहा दमयंती | नमयासुंदरी सीया, नंदा भद्दा सुभद्दा य ।।८।। संस्कृत छाया : सुलसा, चन्दनबाला, मनोरमा, मदनरेखा दमयन्ती । नर्मदासुन्दरी, सीता, नन्दा, भद्रा, सुभद्रा च ।।८।।
SR No.006128
Book TitleSutra Samvedana Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2015
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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