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भरहेसर - बाहुबली सज्झाय
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विशेषार्थ :
'बहुरत्ना वसुन्धरा' यह पृथ्वी सात्त्विक नररत्नों की खान है। आज तक इस संसार में अनेक महापुरुष हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। उनमें से यहाँ कुछ नामों का ही उल्लेख किया गया है। उनके अलावा भी इस संसार में सत्त्व आदि अनेक गुणों से सुवासित अनेक महापुरुष हुए हैं। आदर और बहुमानपूर्वक उनका नाम मात्र लेने से पाप का पर्दा हट जाता है। ऐसे महापुरुषों को प्रणाम करके उनके जैसा आत्मिक सुख प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना इस गाथा में व्यक्त की गई है।
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वैसे तो महापुरुषों में अनंत गुण होते हैं, फिर भी यहाँ सत्त्वगुण को प्राधान्य दिया गया है क्योंकि सत्त्व के बिना अन्य गुण टिक नहीं सकते। सत्त्व नाम का तात्त्विक गुण ऐसा है जो दूसरे अनेक गुणों को खींचकर लाए बिना नहीं रहता ।
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यहाँ राजा वीर विक्रम के नाम से प्रचलित एक प्रसंग याद आता है । घटना ऐसी हुई कि विक्रमादित्य राजा ने जब एक बार दरिद्रनारायण की मूर्ति खरीदी, तब नाराज़ होकर लक्ष्मी, सरस्वती आदि अनेक देव-देवियाँ विक्रमराजा को छोड़कर जा रहे थे । विक्रम राजा ने सभी को जाने की अनुमति दे दी। उतने में 'सत्त्व' आया और वह भी जाने के लिए तत्पर हो गया। राजा ने लाल आँख कर, उग्रतापूर्वक कड़े शब्दों में सत्त्व से कहा, तुम्हें जाने की हरगिज़ आज्ञा नहीं है । तुम्हे तो यहीं मेरे साथ रहना पड़ेगा । 'सत्त्व' को वहीं रहना 3. सत्त्व एक ऐसा गुण है कि खिल उठे तो दूसरे सभी गुणों को उजागर कर दे ।
- महामहोपाध्यायजी
- कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य
* सर्वं (गुणाः) सत्त्वं प्रतिष्ठितम्
* 'क्रियासिद्धि: सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे'